जिये जिन्दगी नेक ईमान से
छूए जो फूल
बगीया में
हाथों को
सुखद एहसास
हो गया
छुए जो चरण
बुजुर्गों के
जीवन सफल
हो गया
की प्रार्थना
देव से
कामना पूरी
हो गयी
तपती रेत पर
शीतलता का
एहसास हो गया
करो महसूस
हर एक के
दुःख दर्द को
बनें सहारा
जरूरतमंदों के
मानवता का
एहसास हो गया
बनो सहारा
बूढापे में
माता पिता को
स्वर्ग सा
एहसास हो जाऐगा
है जितनी जिन्दगी
नेक ईमान से जियो
ईश्वर से सामीप्य का
एहसास हो जाएगा
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल