जिन राहों पर शज़र दुआ के
घुन गेहूँ में घुस जाते हैं ।
गेहूँ के सँग पिस जाते हैं।
सबसे बचकर चलता हूँ पर
घिसने वाले घिस जाते हैं।
यार दोस्त जो पिछड़ गए हैं
वे करके रंजिश जाते हैं।
जिन राहों पर शज़र दुआ के
उन पर तो मुफ़लिस जाते हैं।
आँखों पर कस ली है पट्टी
पर आँसू हैं, रिस जाते हैं।
संजय नारायण