जिन्दगी
!! श्रीं !!
जिन्दगी
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जिंदगी की दुल्हन के नखरे अनौखे देखे,
रूँठेगी जरूर यह मन नहीं पायेगी ।
छलती है हँस के ये चाहती है भोग सभी,
एक दिन आँसुओं के, जाम ये पिलायेगी।।
आती-जाती साँस सोचो इसका भरोसा क्या है ,
कब कहाँ ठहरे ये लौट के न आयेगी ।
कितने भी यत्न किये रोक नहीं पाया कोई ,
अटल है सत्य देह यहीं छूट जायेगी ।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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