जिन्दगी
बेशक मुझमे कुछ कमी हो सकती है ।
जिन्दगी कभी हँस,तो कभी रो सकती है ।।
सब्र की कोई कमी नही मुझमे,रंग सा गहरा हूँ ।
आज फिर से मेरी और जिन्दगी की ठण गई है ।।
बेशक मुझे मेरे कर्मो का फल नही मिलता।
कई सवालो का हल नही मिलता,
तलाश है अनसुलझे प्रश्नो की
आज फिर से मेरी और जिन्दगी की ठन गयी ।।
माँ के पेट से अर्थी तक ,जिन्दगी यूँ ही चलती है।
कभी समझी और कभी ना समझी मे गुजरती हैं ।।
लोगो को परखने का सभी का है, नजरिया अपना अपना ।
कोई निहायती गैर और कोई हद से भी अपना है ।।
जिन्दगी मसलो की किताब बन गयी।
अधूरे किस्सो की दास्ताँन बन गई
मन में अरमानो का सैलाब है ।।
ना कहीं हल्का सा ठवराव है ।
जिन्दगी पाँव पकडती रही ।।
मेरी आज जिन्दगी से फिर से ठन गयी।।