जिन्दगी
जिन्दगी हँसते हुए हुए ही आज चलनी चाहिए
ये उमर भी काम को करते हुए कटनी चाहिए
मत करे अभिमान अपने रूप पर तू आज तो
एक दिन काया सलोनी यूँ ही ढलनी चाहिए
गैल चलती हो लटों झटका के पानी आज जो
मनचलों पर दामिनी तो आज गिरनी चाहिए
जब नटी सी वो कमर मटका चली जाये कभी
चाल उसकी तो तभी तो फिर संभलनी चाहिए
सिर रखे गागर सुकोमल जल भरन को जब चली
मृग हिरणी सी उछल आगे टहलनी चाहिए
डॉ मधु त्रिवेदी