— जिन्दगी हूँ तुम्हारी —
जब से आयी हूँ जिन्दगी में
बन कर अर्धांगिनी तुम्हारी
जिन्दगी अब तुम से ही है
तुम ही हो जिन्दगी हमारी !!
मुझे तुम प्यार से पढना
क्यूंकि मोहोब्बत हूँ तुम्हारी
आ गयी हूँ सागर से मिलने
मैं तो नदिया हूँ अब तुम्हारी !!
कन्हैया बन के आये हो
जब से जिन्दगी में हमारी
तुम्हारी याद में जैसी जी रही थी
मैं मीरा सी बनकर तुम्हारी !!
छोड़ दिया सब घर द्वार
अब तो तुम हो जिन्दगी हमारी
प्यार से दुलार से सदा महकाना
घर आँगन में यह नई दुनिया हमारी !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ