जिन्दगी से गुफत्गू करलो
जिन्दगी से गुफत्गू करलो
किसके पास फुरसत है दिल लगाने की
झेल रहे हैं हम बेरुखी जमाने की
भागती फिरती दुनिया में किसी को होश कहाँ
थोड़ा सुस्ता लो , जाने सासों का अन्त कहाँ
कुछ ठहरो , जिन्दगी से गुफत्गू करलो
कभी तो इसकी भी सुध लेलो
जो खो गई, न मिलेगी फिर चिता तक
पड़ जाओगे अकेलें , इसे भी साथ लेलो
यही वो शै है, जिससे तुम मात खा गए
इसी को सवारने में, इसे ही बिगाड़ गए
जरूरतें ज़िन्दगी की थोड़ी सी थीं मगर
कब्र के लिए, तुम ताजमहल बनवा गए
भूल न जाना कि सासों की डोर बहोत नाज़ुक है
आज पड़ोसी गया , कल तुम्हारी बारी है
फिर न मिलेगा मौका, आज दिल की बातें करलो
न हुईं पूरी सही , अधूरी ख्वाहिशों को याद करलो
दीपाली कालरा