जिन्दगी यूं ही क्यों , गुमनामी के निशाँ हो जाए
जिन्दगी यूं ही क्यों , गुमनामी के निशाँ हो जाए
जिन्दगी यूं ही क्यों , गुमनामी के निशाँ हो जाए
क्यों न हम , मन में आशा और उल्लास के दीपक जलाएं
जिन्दगी यूं ही क्यों, तिरस्कार के समंदर में खो जाए
क्यों न हम स्वाभिमान को, अपने उत्कर्ष का हमसफ़र बनाएं
जिन्दगी यूं ही क्यों , अंतहीन सफ़र की मुसाफिर हो जाए
क्यों न हम अपने प्रयासों में , समर्पण की रोशनी जगाएं
जिन्दगी यूं ही क्यों, अर्थहीन प्यास का समंदर हो जाए
क्यों न हम जिन्दगी में , शालीनता को अपना हमसफ़र बनाएं
जिन्दगी यूं ही क्यों, गुमसुम सी अँधेरे में खो जाए
क्यों न हम आशा का दीपक जला, इसे रोशन बनाएं
जिन्दगी यूं ही क्यों, संसार की माया – मोह में खोकर रह जाए
क्यों न हम इबादत को अपनी मुक्ति का जरिया बनाएं
जिन्दगी यूं ही क्यों, खुदगर्जी के समंदर में खो जाए
क्यों न हम रिश्तों की , एक खुशनुमा महफ़िल सजाएं
जिन्दगी यूं ही क्यों, निराशा के बवंडर में खो जाए
क्यों न हम अपने साहस के बादलों से सजा , एक आसमां सजाएं