जिन्दगी तेरे सिवा
और क्या बाकी रहा ऐ आशिकी तेरे सिवा
कर नहीं पाया किसी की बन्दगी तेरे सिवा
जब अँधेरे बन गए हिस्से की मेरी मिल्कियत
न मिली मुझको कही भी रोशनी तेरे सिवा
जिन्दगी का नाम दूजा पूछ बैठा जब कोई
नाम न सूझा कोई एकबारगी तेरे सिवा
सारी मीठी झील भरकर पी गया मैं जाम में
पर कहीं भी न मिटी ये तिश्नगी तेरे सिवा
यूँ तो मन्दिर और मस्जिद हैं बहुत इस मुल्क में
खोज न पाया कहीं पाकीजगी तेरे सिवा
धीरे-धीरे दोस्त सारे छोड़कर जाने लगे
अन्त में कुछ न बचा ऐ दुश्मनी तेरे सिवा
जी लिया जी भर के लेकिन अंत में कुछ यूँ लगा
और तो सब कुछ है मुझमें जिन्दगी तेरे सिवा