जिन्दगी जुगनुओं के जैसे झिलमिल लगती है।
जिन्दगी जीने का मकसदे मुस्तकबिल ढूंढती है।
कोई तो बताए हमें पता वास्त ए मंजिल पूछती है।।1।।
अब क्या करे शिकवा गिला हम अपने खुदा से।
जिंदगी कभी आसान तो कभी मुश्किल लगती है।।2।।
गरीब को दो पहर का सुकूँ का खाना नही मयस्सर।
पर अमीरों के घर हर शाम ही महफिल सजती है।।3।।
क्या बताए ऐ जिन्दगी तू हमें कैसी लगती है।
कभी हमनवां तो कभी तू संग ए दिल दिखती है।।4।।
चाहत समां की तरह बाजार में बिकने लगी है।
मुहब्बत अब कहां आशिकों में दर्दे दिल दिखती है।।5।।
दिल अब कुछ वक्त के लिए ठहराव चाहता है।
ये जिन्दगी जुगनुओं के जैसे झिलमिल लगती है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ