जिन्दगी के किसी कोरे पन्ने पर
जिन्दगी के किसी कोरे पन्ने पर
स्याह यादों की विखरी है शायद
नाउम्मीदी के खुश्क शाखो पर
आस की बरक फिर खिली है शायद
वो जो भूल गई थी मुस्कुराने का ढंग
आज की तबस्सुम से पहचान हुई शायद
जिन्दगी के किसी कोरे पन्ने पर
स्याह यादों की विखरी है शायद
नाउम्मीदी के खुश्क शाखो पर
आस की बरक फिर खिली है शायद
वो जो भूल गई थी मुस्कुराने का ढंग
आज की तबस्सुम से पहचान हुई शायद