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8 Sep 2024 · 1 min read

जिन्दगी के किसी कोरे पन्ने पर

जिन्दगी के किसी कोरे पन्ने पर
स्याह यादों की विखरी है शायद
नाउम्मीदी के खुश्क शाखो पर
आस की बरक फिर खिली है शायद
वो जो भूल गई थी मुस्कुराने का ढंग
आज की तबस्सुम से पहचान हुई शायद

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