जिन्दगी की सरगोशियाँ
ये जिन्दगी उदास सी लगती है आजकल
फिर भी तो बहुत खास सी लगती है आजकल
कल जी रहे थे जिनको हम कोस _कोस कर
घड़ियां वो लाजवाब सी लगती हैं आजकल
घिस घिस के जिन्दगानी तब दिखती थी पुरानी
इक कीमती लिबास सी लगती है आजकल
जिन राहों की थकान से घबरा गये थे हम
वो खोई जायदाद सी लगती हैं आजकल
कल से भी शिकायत थी और आज से भी है
ये दुनिया शिकवेगाह सी लगती है आजकल
गंगा में तैरती हुई इतरा रही हैं जो
वो लाशें भी अनाथ सी लगती है आजकल
सब मंजिलें बिछड़ गईं भ्रम होता है यही
फिर भी मिलन की आस सी लगती है आजकल