जिन्दगी की शाम
बचपन साथ रखिएगा,जिन्दगी की शाम मे!
उम्र महसूस ही नही होगी,सफर के मुकाम मे!!
इसीलिए बचपन के शौक पाले हर काम मे!
रोज़ कसरत और दौडना ज़रुरी इस पैगाम मे’!!
मेरा मुस्तकिल कभी कोई ठिकाना कब रहा?
पर दोस्तो संग महफिल सजाता हू हर शाम मे!!
कोई न कोई हुनर गाना-बजाना साथ रखिए,
काम मे मशगूल रहिए ,सजाए महफिल शाम मे!!
समय चुटकी बजाते कट जाएगा पूजा-पाठ मे,
वैतरणी पार करने को मन लगा कृष्ण और राम मे!!
सर्वाधिकार सुरछित मौलिक रचना
बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट,कवि,पत्रकार
202 नीरव निकुजं फेस-2 सिकंदरा,आगरा -282007
मो:9412443093