जिन्दगी की तलाश में (कहानी)
सुबह के 9ः30 बजे थे वक्त सड़कों पर दौड़ा चला जा रहा था आफिस के लोग आफिस की तरफ, स्कूली बच्चे स्कूल की तरफ, दुकानदारों को अपनी दुकान का शटर उठाने की जल्दी पड़ी थी लखनऊ के चारबाग से लेकर हजरतगंज तक महौल कुछ ऐसा था कि किसी को रोकना मुश्किल ही नहीं न मुमकिन सा था, लोकेश भी अपने आफिस की ओर निकला था लोकेश मानवीय संवेदनाओं से लवालव व्यक्ति था गलत बात को वह कभी मंजूर नहीं करता था उस दिन अपनी मोटरसाइकिल पर सवार लोकेश सिग्नल लाल होने के कारण हुसैनगंज के ट्राफिक सिग्नल पर रूका। कार, बस, सिटी बस, मोटर साइकिल, साईकिल, रिक्शा आदि से सड़क पटी हुई थी लोकेश की बाइक जहाँ रूकी वहीं पर बराबर से एक इनोवा कार आकर खड़ी हो गई। कुछ ही देर में लोकेश ने देखा कि एक 10 साल की लड़की आई और कार का बोनट साफ करने लगी, उसके एक हाथ में सफाई के लिए कपड़ा था तो दूसरे हाथ में कुछ सिक्के थे जो सुबह से मांग मांगकर उसने इकट्ठा किए थे। उसने पहले तो एक हाथ से कार साफ की, फिर दूसरे हाथ को कार की स्टेयरिंग पर बैठे व्यक्ति की ओर इस आशा के साथ अपनी हाथ उँगलियों से खटखटाया, कि उस गाड़ी का चालक द्वारा उसे कुछ न कुछ जरूर मिलेगा। लोकेश टकटकी लगाए ये सब देख रहा था तब तक सिग्नल लाईट लाल से हरी हो गई और गाड़ी के ड्राइवर ने बिना उस लड़की को देखे गाड़ी स्टार्ट की, और निकल गया। लड़की उस गाड़ी को देखती रह गई जैसे उसने कोई उम्मीद किरण देखी हो और सफलता के अन्तिम प्रवेश द्वार पर पहुंच कर भी मायूसी ने उसके चेहरे की चमक को असफलता की चादर उड़ा दी हो।
लोकेश उस परिस्थिति के यथार्थ को कुछ परेशान हो गया और उस लड़की की मनोदशा पढने का जतन करने में गया। ट्राफिक सिग्नल की लाईट हरी होने के कारण उसके आगे पीछे के सारे वाहन अपने अपने गंतव्य के लिए निकल गये थे और वो लड़की भी वहां से हटकर सड़क के दूसरी ओर चल पड़ी जिधर ट्राफिक सिग्नल लाल था लोकेश सड़क के बीचोंबीच खड़ा था और उस लड़की की हर गतिविधि को बस एक टक देखे जा रहा था तभी किसी की आवाज से उसका ध्यान टूटा, ट्राफिक हवलदार था बोला, “ओ भाई साहब कहाँ जाना है आपको और इस तरह बीचों बीच सड़क पर क्या देख रहे हो, जब लोकेश ने देखा कि सड़क पर सिर्फ वही अकेला रह गया है वक्त उसके साथ खड़े सभी वाहनों के साथ आगे निकल गया था लेकिन वह उस लड़की की भाव भंगिमा से पूरा का पूरा विचलित हो गया। उसके कदम जैसे ठहर से गए हो। लोकेश आगे नहीं बढ़ पाया और उस लड़की के हर स्वरूप से परिचित होने के लिए वही एक किनारे एक चाय की दुकान पर बैठ गया। लेकिन वक्त उसके लिए ठहरा नहीं 5 मिनट बाद उसकी जगह उसी की तरह आफिस के लिए निकला एक और लोकेश आकर खड़ा हो गया। इस बार लडकी ने बाइक चालक की बाइक का टापा साफ किया और वैसे ही एक हाथ बाइक चालक की ओर हाथ बढ़ाया। इस बार भी कुछ वैसा ही हुआ जैसे ही उस लड़की ने कुछ मांगने की कोशिश की ट्राफिक सिग्नल हरा हो गया लेकिन इस बार बाइक सवार रूका नहीं बाइक सेल्फ स्टार्ट थी जब तक लडकी बाइक सवार से कुछ कह पाती बाइक सवार आगे निकल गया। यही क्रम काफी देर तक चलता रहा फिर एक और कार आकर रूकी वह लड़की फिर अपने काम पर लग गई इस बार दूसरी ओर कुछ ज्यादा ही गाड़ियाँ होने की वजह से गाड़ियां लोगों ने गाडियां बन्द कर ली थी लोकेश एक टक बस उस लड़की की हर प्रतिक्रियाओं को देखे जा रहा था लडकी फिर अपने काम पर लग गई लेकिन इस बार उसे सफलता मिल रही थी ट्राफिक सिग्नल लाल था और 10 साल की लड़की जल्दी जल्दी कभी एक हाथ से कारों का बोनट करती और दूसरे हाथ से लोगों से कुछ पैसों की उम्मीद से देखने लगती और जो भी खुश होकर उसे जो पैसे देता उसे एक प्यारी सी मुस्कान के साथ पैसे लेकर आगे बढ़ जाती। ट्राफिक सिग्नल की लाईट फिर हरी हुई वक्त की रफ्तार के साथ साथ सारी गाड़ियों ने रफ्तार पकड़ ली और चन्द मिनट में सड़क बिल्कुल खाली हो गई। लोकेश जो मानवीय संवेदना से बहुत जल्दी प्रभावित हो जाता था उसने थोड़े से वक्त में उस बच्ची के चेहरे की मायूसी और मुस्कान को एक साथ देख लिया था। वो उस लड़की में संघर्ष और सफलता के चलचित्र का सीधा प्रसारण देख रहा था।
खाली सड़क पर वक्त कारों, बसों, और रोजमर्रा के आने जाने वाले लोगों को लेकर आगे बढ़ चुका था छोटी सी लड़की जिसने अभी अभी हाथों में चन्द सिक्के इकट्ठे किए थे उसके चेहरे पर मुस्कराहट ने अधिकार कर लिया था तभी उसने रोड पार किया और जहाँ पर बैठकर लोकेश चाय पीते हुए उस लड़की की हर गतिविधि पर नजर रख रहा था वहीं पास में ही नीचे जमीन पर बैठकर अपनी नन्ही सी अंगूलियों से सिक्कों को गिनती करने में व्यस्त हो गई, लोकेश उसकी गिनती की व्यस्तता में कक्षा एक की छात्रा जोड़ घटाव में व्यस्त हो गई हो वह लड़की बार बार अपना सिर खुजियाती जैसे किसी गिनती को बार-बार भूलकर फिर से शुरू कर रही हो। थोड़ी देर बाद उसने एक पोटली में रूपये रख लिए और फिर ट्राफिक सिग्नल की लाइट के लाल होने का इन्तजार करने लगी। लोकेश तुरंत उठा और उठकर उस लड़की के पास जाकर बैठ गया। लोकेश को देखकर लड़की कुछ घबरा गई और बोली आप कौन हो मेरे पास क्यों आए हो मेरे पैसे लेने आए हो क्या मैं नहीं दूंगी। लोकेश को देखकर बच्ची घबरा गई लेकिन लोकेश ने थोड़े प्यार से बच्ची से कहा, “अरे नहीं नहीं मैं तो आपका दोस्त हूँ मुझसे दोस्ती करोगी। ”
लडकी, “दोस्त ये कौन होता है। “
लोकेश, “आप दोस्त का मतलब नहीं जानती।”
लडकी, “नहीं।”
लोकेश, “दोस्त का मतलब जो आपके भले की सोचे, आपसे प्यार करे। पहले आप ये बताइए आपका नाम क्या है।
लडकी, “मेरा नाम रोशनी है। “
लोकेश, “अरे आपका तो नाम बहुत शानदार है, आप कहाँ रहती हो।”
रोशनी, “मैं गोदाम में रहती हूँ। “
लोकेश, “मतलब”
रोशनी, “हाँ मैं एक बहुत बड़े गोदाम में रहती हूँ। “
लोकेश, “और आपके मम्मी पापा कहाँ हैं ।”
रोशनी, “ये कौन होते हैं।”
लोकेश, “आपको मम्मी पापा का मतलब नहीं पता।”
रोशनी कुछ बात बदलते हुए।
रोशनी, “अंकल आप मेरे दोस्त हो न।”
लोकेश, “हाँ अब हम दोस्त हैं। “
रोशनी, “तो मुझे चाय पिला सकते हो”
लोकेश, “अरे बिल्कुल दोस्त।“
लोकेश ने चाय वाले से रोशनी के लिए एक दूध वाली स्पेशल चाय बनवाकर दी साथ में एक समोसा भी दिला दिया। रोशनी के चेहरे पर खुशी के भाव साफ साफ दिखाई देने लगे थे। लोकेश बहुत खुश था उसके चेहरे की खुशी देखकर। जब रोशनी ने चाय समोसे खा लिए तब लोकेश ने अपना प्रश्न फिर से दोहराया, “बेटा आपके मम्मी पापा कहाँ हैं।”
रोशनी ने फिर जबाव दिया, “ये कौन होते हैं।”
लोकेश समझ नहीं पा रहा था कि रोशनी क्या कह रही है। उसकी बात समझ क्यों नहीं पा रही है।
लोकेश ने फिर पूछा, “अच्छा ये बताओ रोशनी आपको खाना कौन देता है।”
रोशनी, “वो तो मालिक अंकल देते है।”
अपनी जिन्दगी में पहली बार अजीब सा शब्द सुना था लोकेश ने मालिक अंकल। तभी लोकेश को रोशनी के बारे में सबकुछ जानने की उत्सुकता हुई उसने रोशनी से कहा, “मैं आपका अब दोस्त बन गया हूँ मुझे अपने घर नहीं ले चलोगी।”
रोशनी ने मुँह पर अँगुली रखते हुए कहा, “अंकल जी चुप हो जाओ, मेरे गोदाम पर कोई भी नहीं जाता। अगर किसी को पता चल गया न कि मैंने आपको अपने गोदाम में रहने की बात बताई है तो मालिक अंकल मुझे बहुत मारेंगे।
रोशनी इतना कहकर उठी और सामने सड़क पर एक बार फिर सिग्नल की लाल लाइट देखकर भाग कर गई और फिर से अपने काम में लग गई लोकेश उस दिन आफिस जाना भूल ही गया एक शब्द उसके जहन में दौड़ने लगा “मालिक अंकल”।
कार, गाड़ी, साईकिल सब आते ठहरते और चले जाते रोशनी भी एक हाथ में कपड़ा लेकर दूसरे हाथ में कुछ सिक्कों की उम्मीद से इधर से उधर और उधर से इधर भाग दौड़ करती सफलता और असफलता का एक साथ जायजा ले रही थी और लोकेश रोशनी को बस देखे जा रहा था।
दोपहर का 1 बज गया था रोशनी ने अपने सारे पैसे एक पोटली में रखे और कही निकल पड़ी। लोकेश भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ा कुछ देर बाद रोशनी एक बहुत बड़े गोदाम में घुसी जहाँ एक एक करके बहुत सारे बच्चे घुस रहे थे लोकेश अब भी कुछ समझ नहीं पा रहा था आखिर माजरा क्या है तभी वहां एक 72 साल की उम्र का वृद्ध बैठा मिला। वह वृद्ध व्यक्ति सूनसान सड़क पर अकेला पड़ा था उसे कोई देखने वाला नहीं था जगह जगह उसका शरीर सड़ सा गया था लोकेश ने उसे पकड़ लिया और पूछा, “बाबा इस गोदाम में इतने सारे बच्चे क्या कर रहे हैं और ये सब क्या है। “
वृद्ध व्यक्ति, “यहाँ एक व्यक्ति है जल्लाद सिंह नाम है उसका जो छोटे छोटे बच्चों को उठाकर अपने साथ ले आता है पहले उन्हें पालता है और जब वो बड़े हो जाते हैं तो उन्हें पूरे लखनऊ में किसी न किसी सिग्नल पर भेज देता है भीख मांगने के लिए। लेकिन इसमें उसका कोई दोष नहीं है क्योंकि वो खुद एक नाजायज बच्चा है और उसका जीवन खुद सिग्नल पर भीख मांगते बीता है और वो इसके अलावा और कुछ जानता ही नहीं है। उसने यही देखा है यही सीखा है।
लोकेश ने उस वृद्ध से पूछा, “तो बाबा इसका जिम्मेदार कौन है। “
वृद्ध ने बताया, “बेटा इसका जिम्मेदार मैं हूँ मैं अपनी जवानी के दिनों में एक अण्डर वर्ल्ड डाॅन के साथ मिलकर काम करता था और बच्चों की हेराफेरी करता था और मेलों बाजारों से बच्चों को उठाकर विदेश भेजता था और ये वही अड्डा है जहाँ मैं बच्चों को चुराकर रखता था एक दिन पुलिस का छापा पड़ा और सारे बच्चे छुड़ा लिए गये लेकिन जल्लाद सिंह कैसे भी बच गया तभी मैं कुछ दिनों के लिए दुनिया की नजरों से गायब हो गया और इसी गोदाम में छिप गया और जब भूख लगी तब जल्लाद सिंह को मार मार कर घर घर भीख मांगने के लिए मजबूर कर दिया। लेकिन एक दिन जब जल्लाद भीख मांगने के लिए गया तभी पुलिस को मेरे यहाँ होने की खबर लग गई और मुझे उम्रकैद की सजा सुनाई गई और वर्षों बाद जब यहां आया तो जल्लाद ने भीख बच्चों की सेना बना ली। मैंने जो उसके साथ किया वही वो इन बच्चों के साथ कर रहा है।
लोकेश, “लेकिन इतने सारे बच्चे, कोई इनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट नहीं करता।”
वृद्ध व्यक्ति, “बेटा ये वो बच्चे हैं जो न जाने किस किस की नाजायज औलादें हैं जो अपनी जवानी में प्यार मोहब्बत जैसी नौटंकी करते हैं और जब कोई रक्त का कतरा नवजात शिशु के रूप में दुनिया में आ जाता है तो शर्म से मुँह छिपाने के लिए कोई गन्दी नाली में तो कोई किसी कचरे के डिब्बे में फेंक जाता है। जल्लाद सिंह ने आज तक किसी का बच्चा चोरी नहीं किया। ये सब वो नाजायज बच्चे हैं। इसलिए इस पर कोई कानूनी कार्यवाही नहीं होती और पुलिस वालों को भी सब मालूम है लेकिन कार्यवाही इसलिए नहीं करते कि इन 100-150 बच्चों को छुड़ा भी ले तो इन्हें रखेगा कौन। जल्लाद सिंह भले इन्हें मारता हो पीटता हो लेकिन पाल पोसकर जिन्दगी भी तो उसी ने दी है।।
लोकेश उस वृद्ध की कहानी सुनकर उसी पर भड़क गया बोला, “तुम इंसान के रूप में हैवान हो, तुम्हें शर्म नहीं आई, एक बच्चे की जिन्दगी से खेलते हुए अगर आज जल्लाद सिंह न होता तो इन बच्चों को कोई गोद ले लेता। ये जो तुम्हारे शरीर में कीड़े पड़ रहे हैं ये सब इन बच्चों की बद्दुआ है। “
लोकेश वहाँ से हटकर गया और गोदाम के अन्दर झांकने लगा जहां बच्चे खाना खा रहे थे कुछ खाना खाकर अपने कन्धे पर झोली टांगकर तैयार हो रहे थे उसने देखा कि जल्लाद सिंह की गोद में एक बच्चा था जिसे वो दूध पिला रहा था। लोकेश मन ही मन टूट गया था क्योंकि वो कुछ भी नहीं कर सकता था पुलिस को भी नहीं बता सकता था। आत्मग्लानि से भर गया। वो कुछ भी नहीं कल सकता था। तभी एक अलार्म की आवाज सुनाई दी सारे बच्चे झोली टांगकर तैयार हो गए। हर सिग्नल पर जाने के लिए जैसे कोई नौकरी वाला खाना खाकर तैयार हो गया हो। लोकेश जल्दी से वहाँ से हटकर दूर खड़ा हो गया।
दूर खड़ा लोकेश देख रहा था उसके सामने से अपने कन्धे पर शाम की भूख टांगकर खाने का इन्तजाम करने लखनऊ की चारों दिशाओं के सिग्नलों पर निकल पड़ा था बचपन, मन में आशा लिए जिन्दगी की तलाश में।
मोहित शर्मा स्वतंत्र गंगाधर