जिन्दगी का सफर
बहुत खुशनुमा रहा ज़िन्दगी का सफर
चलती रही तुम साये की तरह दर-बदर!
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आँखें खुले तो चेहरा तुम्हारा सामने
जाने कैसे छूट गया फिर भी सफर!
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मलाल इसका नहीं कि तुम चली गयी
मलाल इसका कि अधूरा रह गया सफर!
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चलते रहे हर कदम अँगुली पकड़कर तुम्हारी
आज सुना रह गया बगैर तुम्हारे ये शहर!
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देखती हूँ हर रोज टूटते तारे में तुम्हें
शायद मिल जाए कभी तुम्हारी नजर!
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साया हो तुम मेरा बस यही बाकी एहसास है
ढूँढती है आँखें रोज अब तुम्हें हर चाँदनीं हर शहर….!
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शालिनी साहू
ऊँचाहार, रायबरेली(उ0प्र0)