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28 Sep 2021 · 1 min read

जिन्दगी का जीवन

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ब्रह्माँड के उमर के मानवीय वर्षों के
एक लम्हे की घटना, जिन्दगी।
इतरा-इतरा कर विवरण और वर्णन।
समेटो तो
चन्द लम्हों की जिन्दगानी
कुछ लफ्जों की कहानी।
खो जाना है फिर
नीले आकाश की गहरी निलिमा में धुआँ।
मिट जाना बिखरकर
अथवा धरा के गहरे आगोश में
सूक्ष्मातिसूक्ष्मतम कणों (nano) में।
कल सुबह के क्षितिज से उठते सूर्य के साथ
उठनेवाली नयी पीढ़ी
खड़ी है, रोककर श्वास
लगाए टकटकी तुम्हारी तरफ।
‘बैलेंस’ या ‘ड्यूज’ वसीयत।
जीते और होते रहने के शीर्षक में
सृजित ना करो, रँग मत भरो
विध्वंस का दलदल।
चाँदी चले-फिरे स्वभावगत।
ऐश्वर्य और समृद्धि की उपलब्धि के नाम पर
थप्पड़ मत मार भावी पीढ़ी के गाल पर।
क्यों न स्नेहिल,प्रेमिल कामनाओं के साथ जीओ!
न हो बिन रोटी के शीतल जल पीओ।
वर्चस्व के लिए
परमाणु को विखंडित हो जाने तक
प्रहार न करो।
मत दो जन्म
अशक्त और अधूरी
कल की पीढ़ी।
कि मृत्यु की इच्छा से ग्रसित जन्म ले।
और मरने तक तिलमिलाता रहे।
और धरा चमकती चट्टानों का ढूह बन जाय।
—————————-

Language: Hindi
168 Views
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