जिनगी पथ
सन्न बैसू हम
केहन जिनगी छै
के अप्पन के पराया छै
काँट भरल अतह सगरे पथ
रोड़ा बनिकेँ ठारह अपनेक देखू
केओ नै अप्पन एहि ठाम सब पराया छै
पैघ मनुख्ख के पूजि रहल छै
आगू बढैत के केओ रोकि रहल छै
हिय कहै नै हारि अहिना जिनगी पथ मे
पाग चाहे गमछा राखि आगू बढि अहिना
झूका दैब एक दिन दूनिया के अप्पन आगु
कियो नै रहतै अपन आन सब अप्पन हेतयै अतय
हिय कहैय इ दैखि उपरसँ भगवन हाँसि रहल छै
मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य