जिनको ईमान
जिनको ईमान सरे आम लुटाते देखा .
क़द ज़माने में उन्हीं को ही बढ़ाते देखा ..
पारसाई की मिसालें थीं जहां में जिसकी . ( = पवित्रता )
गोरे आरिज़ पे उसे जान लुटाते देखा .. ( = गाल )
जिनके नक़्शों को कभी चूम लिया था मैंने .
शर्म आती है उन्हें राह जो जाते देखा ..
हम तो आये थे किनारों पे बड़ी हसरत से .
प्यास नदियों को भी आँखों में छिपाते देखा ..
जिनकी खुशरंग मिज़ाजी के बड़े चर्चे थे .
ख़ाक सहराओं की उनको भी उड़ाते देखा ..
नाम आया था तेरा यूँ ही मेरे होंठों पर .
अपने लफ़्ज़ों को भी ख़ुशबू सी लुटाते देखा ..
मर ही जाता जो कोई और बिताता ऐसी .
हमने ख़ुद को जो “नज़र” उम्र बिताते देखा ..
(नज़र द्विवेदी)