जिनके नसीब में था वही मोअतबर हुए
जिनके नसीब में था वही मोअतबर हुए
दौलत के दम पे लोग यहां नामवर हुए
मुश्किल जो रास्ते थे वो आसान हो गए
मंज़िल हमें मिली है, कहां दरबदर हुए
दौलत की आड़ में उन्हें बख़्शा नहीं गया
जिनकी थी क़द्रदानी वही बेक़दर हुए
था बेपनाह ख़ुद पे जिन्हें एतमाद वो
मग़रूर बादशाह इधर से उधर हुए
रो-रो के हमने घूंट पिए सब्र के तो फिर
दुश्मन के जितने तीर थे, सब बेअसर हुए
एहसास अपने होने का हमको न हो सका
ऐ “शाद” अपने आप से जब बे’खबर हुए
डाॅ फ़ौज़िया नसीम शाद