जिनके आँगन में कोई बूढ़ा शजर होता है
——ग़ज़ल——
मुझको हरगिज़ न ग़मों का कोई डर होता है
जब निगूँ माँ तेरे क़दमो में ये सर होता है
मौत भी आये तो इक बार पड़ेगा मुड़ना
इस तरह माँ की दुआओं में असर होता है
टूट जाये जो तअल्लुक़ ही मुहब्बत में तो
सिर्फ़ रो-रो के हरिक लम्हा बसर होता है
उम्र भर उसको ही दो जून की मिलती रोटी
जिसके हाथों में कमाने का हुनर होता है
बेझिझक बेटा जो करता है हमेशा ख़िदमत
अपने माँ बाप का वो लख्ते-जिगर होता है
धूप की फिक्र सताती ही नहीं है उनको
जिनके आँगन में कोई बूढ़ा शजर होता है
इस तरह तीरे नज़र उसने चलाया प्रीतम
ज़ख़्म सोने में हुआ दर्द इधर होता है
प्रीतम श्रावस्तवी