जिद करो
मुस्कान से न दर्द छिपाने की ज़िद करो ।
हर हाल में यूँ गम को हराने की ज़िद करो ।।
देखो तो एक बार पसीने से सींचकर।
बंजर जमीं पे फसलें उगाने की ज़िद करो।।
अब कोख में मरें नहीं वारिश की चाह में।
नन्हीं सी बेटियों को बचाने की जिद करो।।
अब हाथ की लकीर में किस्मत न ढूंढ़िए।
तूफान अपने कर्म से लाने की ज़िद करो।।
मुझको यकीं है प्यार से पिघलोगे एक दिन।
तुम पत्थरों सा दिल न बनाने की जिद करो।।
अक्सर ही भाई भाई में होती हैं रंजिशें।
आँगन की ऊँची भीत गिराने की ज़िद करो।।
कोशिश न करना एड़ी उठा चाँद छूने की।
धरती पे आसमान झुकाने की जिद करो।।
बैठे जो बहशी भेड़िए संतो के वेश में।
उन पापियों को जिंदा जलाने की जिद करो।।
कब तक तुम्हारे पाप को धोएगी गंगा माँ।
तन मन को ज्योति पाक बनाने की जिद करो।।
श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव