जिदंगी जीना सिखाया (कविता)
अभिनव जयदेव की अनमोल कृति ने
सुख दुख मे जिंदगी जीना सिखाया
देव तुम आते हो कैसे,आओगे कैसे
कृति अंतर मन रचना से जाना
सारा जग अपना,किताबो मे देखा
कोई तिरस्कार करे,कोई सम्मान करे
सुख सागर मिला जितना मुझे
दुःख धारा निर्बल समझ छलती नहीं मुझे
बिषपान बांटते है लोग यहाँ
मधुरस स्वेग पि लेते है
कृति अंतर मन रचना से जाना
जाति धर्म की झूठी गठरी हँटा
मानवता जाति धर्म से जीना सिखाया
उपकार तेरे सारे जहान पर
वामांगिनी साथ देव मन से मिले
जब झूठी मोह माया मे न आया
अभिनव जयदेव की अनमोल कृति ने
सुख दुख मे जिंदगी जीना सिखाया
मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य