*जितने वर्ष लिखे किस्मत में, उतने जीने पड़ते हैं (हिंदी गजल)
जितने वर्ष लिखे किस्मत में, उतने जीने पड़ते हैं (हिंदी गजल)
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1)
जितने वर्ष लिखे किस्मत में, उतने जीने पड़ते हैं
अपने-अपने हिस्से के विष, सबको पीने पड़ते हैं
2)
चादर रोज अगर ओढ़ी तो, अक्सर फट ही जाती है
सूई-धागा लेकर कपड़े, सबको सीने पड़ते हैं
3)
पग-पग पर मिल जाते हैं यों, कॉंच चमकते टुकड़ों में
महॅंगे अति दुर्लभ इस जग में, खरे नगीने पड़ते हैं
4)
धरे हाथ पर हाथ किसी ने, लक्ष्य कहॉं कब पाया है
श्रमवीरों को रोज बहाने, ढेर पसीने पड़ते हैं
5)
जून-जनवरी याद सभी को, यह साधारण हैं बातें
प्रश्न करो संवत में भइया, कौन महीने पड़ते हैं
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451