जिज्ञासा बेटी
मुक्तक – जिज्ञासा बेटी
★★★★★★★★★
कभी धरती में लोटी है ,
कभी बिस्तर में है सोती ।
कभी मुस्कान भरती है ,
कभी है रूठकर रोती ।
कलेजे का मेरा टुकड़ा,
यही है दोस्तों सुन लो ।
है जिज्ञासा मेरे घर बार की,
अनमोल एक मोती।
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रचनाकार- डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
पिपरभावना,बलौदाबाजार(छ.ग.)
मो. 8120587822