जिक्र ज़ालिम का
जब भी होता है जिक्र कभी ज़ालिम का,
आ जाता है ज़ुबान पर नाम हाकिम का।
जस्न मनाते है लोक सोर मचा-मचा के,
पर होता नहीं सोर कभी भी मातम का।
आपनी ही जड़ को जो रहे खुद काटता ,
कितना उज्जल भव्विश है उस आदम का ?
दौड़ सी लगी है यहां ऐटमी हथियारों की,
भगवान ही राखा है यारों इस आलम का।
अगर ना पहुंचे वह आपनी मंजिल पर,
की फायदा है साथ गए फ़िर दानम का।
गिल्ल करे प्रणाम रोज़ ऐसे कुदरत को,
जैसे मालक आगे सीस झुकें खादिम का।
मनदीप गिल्ल धडाक