‘जिंदगी’
हर घड़ी हर मोड़ पर,जिन्दगी हैरान करती है,
हंसते-रोते कैसे-कैसे,जिन्दगी तू काम करती है।
बीत जाते हैं रगड़ते-रगड़ते,एड़ियाँ बरस कई यहाँ,
पलभर में ही कभी तू,अपना ऊँचा नाम करती है।
अभी गुनगुना रहे थे प्रेम गीत, हम शृंगार रस भरा,
ऊपर जाने का अचानक, क्यों तू इंतजाम करती है।
कभी चमकती भोर सी, कभी ठहरी सी अंधेरी शाम,
हर दिन नए पैगाम हमें, तू सुबह शाम करती है।