जिंदगी
ज़िन्दगी तेरा कोई हिसाब नही
तू लाजवाब है तेरा कोई जवाब नही
सच कहूँ तुमको जब से देखा है
तुम हकीकत हो ,कोई ख्वाब नही
मैंने अल्फ़ाज़ सदा यूँ लिखे
ले न आये ये इंक़लाब कहीं
ज़िन्दगी वक़्त की इक पैहरम है
कब चला जाये ये रुआब कहीं
परत दर परत भेद खुलते हैं
ज़िन्दगी राज़ है किताब नही
कब कहाँ शूल चुभें और कहाँ धूल उठे
खुशबू से महकता गुलाब नही
काश!हर कोई समझ ले तेरे इस मंजर को
जिंदगी तोहफा है,अभिशाप नही।