जिंदगी……..
जिंदगी।
हर बार पिघलते देखा तुम को
जिसने जैसे चाहा बनाया
तुमको हर साँचे में ढलते देखा मैंने ✍✍✍✍✍✍
क्यों कभी तुम को किसी से भी
कोई शिकायत न रही
तुमको घुट घुट कर खुद में मरते देखा मैंने ✍✍✍✍
कभी तो एक बार खुद को भी
आईने में निहारा होता
छुप छुप कर कई बार तुम्हे सजते देखा मैंने ✍✍✍
क्यों एक बार तुम हाथ फैला कर
आसमां को नहीं निहारती
खुली हवा में सांस लेने के लिए तुम्हे कई बार झटपटाते देखा मैंने