जिंदगी
जिंदगी
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जिंदगी मुट्ठी से
रेत सरीखी फिसल रही है,
लाख संभालो लेकिन
संभल नहीं रही है।
संभाले जो न जिंदगी को
बिना पतवार
उसकी जिंदगी जायेगी।
जिंदगी के रेस में
हम पिछड़ते जायेंगे,
जिंदगी पतवार बिन
जो हमारी हो जायेगी।
संभल जाइये
मौका भी है दस्तूर भी,
वरना ये जिंदगी
वीरानियों में खो जायेगी,
हमारे हाथ से
जिंदगी की बागडोर छूट जायेगी।
?सुधीर श्रीवास्तव