जिंदगी
जिंदगी एक
अनवरत, अविरल सफ़र
कभी आशा, आकांक्षा के दीयों से रौशन
कभी टूटी ख्वाहिशों के अँधेरों से घिरी
कभी बुझी राख सी, कभी मचलती आग सी
उल्लासित छोटी छोटी जीत पर
कभी धुँधलके में घिरी आस सी
कभी विरहिणी राधा सी
कभी कान्हा की मुरली की तान सी
बूंद बूंद रीतती कभी
अमृतघट सी छलक जाती कभी
जिन्दगी कैसे समझूँ तुझे..
कभी पास पास तू
कभी बिखरती रेत सी
हिमांशु Kulshrestha