जिंदगी
शीर्षक – जिंदगी
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जीवन और जिंदगी हम सोचते हैं।
बस हमारी बातें हैं बातों का क्या हैं।
जिंदगी भर बस समय की रवानी हैं
जिंदगी हंसकर या रो कर जीनी हैं
न समाज न पड़ोसी बस मरने पर सब आते हैं।
यही सच कहानी हम सबको समझनी हैं।
कागज की कीमत हम सभी को बतानी हैं।
सच और भाव कहने वाले को पागल सुनना है।
हां बस जिंदगी गुज़र जाएगी तुम्हें बस सुनानी हैं।
आज कल और पल बस जिंदगी गुज़र जाती हैं।
हां सच तो जिंदगी मन भावों के साथ होती हैं।
बस समय और कुदरत सच तो जिंदगी कहती हैं।
हमारी अपनी जिंदगी हम दूसरों के सहारे जीते हैं।
बस क्या यही जिंदगी हम सभी जानते हैं।
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नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र