जिंदगी
चलें इन बेगै़रतों की भी खै़रियत पूछ ली जाए
बची है क्या अभी तक शराफत पूछ ली जाए
हजारों ज़ुर्म कर सर झुकाए है जो चौखट पे
ख़ुदा की उसने की है इबादत, पूछ ली जाए
दिल साफ था दरिया का,क्यों गर्क़ हुई कश्ती
किससे हुई इतनी बड़ी ग़फ़लत पूछ ली जाए
सयानों में हौसल कहाँ जो सच की ज़ुबां बोले
होगी किसी बच्चे की ये शरारत पूछ ली जाए
औक़ात अगर होगी तो खरीद लेंगे कोई दिन
कितने में बिक रही है सियासत पूछ ली जाए
मारा जाएगा किसी दिन क़ातिलों के शहर में
क्यों लेकर आ गया है सदाक़त पूछ ली जाए
जी तो करता है गले मिल लें नये इस साल में
बांकी है क्या अबतक रफ़ाक़त पूछ ली जाए