जिंदगी
हर रोज, अग्नि परीक्षा से गुजरती है जिंदगी।
तब जाके सोने की तरह चमकती है जिंदगी।
मेरे अधूरे ख्वाबों का बस इतना सा अरमान है
इक चांद को पाने के लिए मचलती है जिंदगी।
राहों मे गैर मिलें या अपने, क्या फर्क पड़ता है
यहां गिर गिर के खुद ही, संभलती है जिंदगी।
इस दिल का आइना टूटा हुआ ही सही, मगर
शौक है संवरने का इसलिए संवरती है जिंदगी
पीतल को मांजने से सोने सा चमक जाता है
घिस घिस कर कसौटी में निखरती है जिंदगी।
हाथों में पत्थर लिए, अपने ही तो फिरते हैं यहां
फिर क्या ग़म, बिखर जाए जो बिखरती है जिंदगी
मयखाने जाने की अब हमें जरूरत नहीं पड़ती
आंखों से बन कर पैमाने, छलकती है जिंदगी।
ऐ साहिब, यथा संभव प्रयास करना ही पड़ता है,
मुश्किलों को हराकर मंजिल पर पहुंचती है जिंदगी।