जिंदगी
सुलझाने चले थे जिन्दगी
मगर खुद ही उलझकर रह गए
भरने चले थे ज़िन्दगी में खुशियां
मगर खुद ही गमसदा हो गए
याद किया बार-२ उन लम्हों को
जिन लम्हों ने हमें जिंदगी दी
डूबे रहते थे जिन ख्यालों में कभी
वो ख्याल भी बेगाने हो गए
बदल रहा था हर शक्स यहां
हमें लगा के वक़्त बीत रहा है
समझने वालों ने हमें गलत समझा
गलती नहीं कोई हमारी थी
के तोड़के कतार की रिवायतें
अब आगे बढ़ चली हूं मैं
के मिलता नहीं रास्ता कभी
कदम जब तक लड़खड़ाए नहीं।
~ Silent Eyes