जिंदगी से पश्चाताप
आज मैं अपनी जिंदगी का सबसे प्यारा गीत अर्ज करता हूँ, सभी का जीवन बहुत महत्वपूर्ण(स्वर्णिम) है, इस गीत में अर्ज किया है कि व्यक्ति आत्महत्या करते समय अपनी जिंदगी और परिवार के प्रति सोचता है … परंतु परिस्थिति उस व्यक्ति के प्रतिकूल हो जाती है और वह व्यक्ति अंततः आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाता है।…..अर्ज है——
स्वर्णिम है मेरी जिंदगी,डर इसको कहीं खो न दूँ।
तड़प मिटती नहीं दिल की,जब तक की रो न लूँ।।
पहले अन्तरे में कवि कहना चाहता है कि अगर जिंदगी न होती तो न कोई मुसीबत और न कोई दर्द सहना पड़ता….और कभी-कभी व्यक्ति अपनी भड़ास निकलने के लिए जिंदगी का नाम ले लेकर अपना बोझ हल्का करने की कोशिश करता है……..अर्ज है—–
सोचता हूँ बस यही,काश!तू न होती।
दर्द क्या होता,जब जिंदगी न होती।।
जिंदगी है जाम गफलत,क्यों मैं पी न लूँ।
स्वर्णिम है मेरी★★★★★★★★★★★★★★★★।।
दूसरे अन्तरे में कवि कहता है कि जब जिंदगी जब मुझको छोड़कर जायेगी तो परिवार वालों पर क्या बीतेगी….पर अंततः किसी की परवाह न करते हुए आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाता है……अर्ज है——-
छोड़कर मेरा दामन,जब जायेगी तू।
साया जब उठे सर से,न समझ पायेगी तू।।
मिटे न रंजोगम तब तक,ये दुनियाँ छोड़ न दूँ।
स्वर्णिम है मेरी★★★★★★★★★★★★★★★★।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा”दीपक”
मो.नं.-9628368094,7985502377