जिंदगी से दर्द ये जाता नहीं (तरही गज़ल)
जिंदगी से दर्द ये जाता नहीं (तरही गज़ल)
जिन्दगी से दर्द ये जाता नहीं
और अपना चैन से नाता नहीं।
आस की कोई किरण दिखती नहीं।
बेबसी में कुछ कहा जाता नहीं।।
जिन्दगी मजदूर की देखो जरा
दो घड़ी भी चैन वो पाता नहीं।।
रात दिन खटता है रोटी के लिये।
माल फोकट का कभी खाता नहीं।।
सत्य की जो राह पर चलने लगा,
साजिशों के भय से घबराता नहीं।।
काम आयेगी न ये दौलत तेरी,
मौत का धन से तनिक नाता नहीं।।
वो कहाँ किस हाल में है क्या पता,
यार की कोई खबर लाता नहीं।।
कृष्ण जय जयकार के इस शोर से
झुग्गियों के शोर का नाता नहीं।।
श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG – 69, रामगंगा विहार,
मुरादाबाद, (उ.प्र.)