जिंदगी सवाल करती है
जिंदगी मुझ से पूछती है क्यों रोता है
मजे लुट मेरे क्यूँ घुट घुट के जीता है
एक ही बार तो आई हूं मैं, क्यों रोता है
बार बार नहीं मिलती मैं फिर क्यों तड़पता है
जी ले जी भर के इसको क्यूँ हरपल रोता है
एक ही बार तो आई हूं मैं, क्यों रोता है
बहुत सोचा तूने दूसरों के बारे में
पर वक़्त आख़िरी में हाथ लगा कुछ ना तेरे
एक ही बर तो आई हूं मैं, क्यों रोता है
सपने अपने भुला, करता रहा दूसरों के सपने पूरे धोखा अपनों से खाकर हाथ ना रहा कुछ तेरे एक ही बर तो आई हूं मैं, क्यों रोता है
: कुशाग्र,
235, मॉडल टाउन, यमुनानगर (हरियाणा)
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