जिंदगी रेत जैसे फिसलती गयी
प्यास जीने की ज्यों-ज्यों मचलती गयी।
जिंदगी रेत जैसे फिसलती गयी।
ख्वाब पूरे नहीं हो सके उम्र भर-
देह बचपन जवानी में ढ़लती गयी।
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
प्यास जीने की ज्यों-ज्यों मचलती गयी।
जिंदगी रेत जैसे फिसलती गयी।
ख्वाब पूरे नहीं हो सके उम्र भर-
देह बचपन जवानी में ढ़लती गयी।
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य