जिंदगी ये क्या?
जिंदगी ये क्या?
है किसको पता!
देखा इसे
खत्म होता हुआ।
मानिंद सूरज के
बढ़ता है यह।
पागल जवानी बन
चढ़ता है यह।
रास्ते में
हो जाता है लापता।
जिंदगी ये क्या?
है किसको पता!
छोटा सा क्षण।
अति छोटी कथा।
बड़ी पीर और
बड़ी है व्यथा।
जिंदगी ये क्या?
है किसको पता!
कहीं यह तरल।
कहीं सच्ची शिला।
कोई बुझ पाये न
क्या सिलसिला।
जिंदगी के सारे ही शब्द
और सारे अक्षर।
पहचान वर्णों के
व्यंजन या स्वर।
सच्चा की झूठा
कोई बता देता।
जिंदगी ये क्या?
है किसको पता!
जो भी हो
मौत की ही तो थाती।
जिसको लिखें
चाहे जैसी भी पाती।
केवल खता है यह
केवल खता।
जिंदगी ये क्या?
है किसको पता!
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अरुण कुमार प्रसाद 22/11/22