जिंदगी में तालमेल
संगीता और संजय शादी की वर्षगांठ पर बेटे और मम्मी के सौ जाने के बाद साथ बैठ कर खाना खा रहे थे।
प्रेम भी बहुत था दोनों में लेकिन कुछ समय से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि संबंधों पर समय की धूल जम रही है। शिकायतें धीरे-धीरे बढ़ रही थीं।
रोमांटिक माहौल में बातें करते-करते अचानक संजय ने कहा :
” हमें आपस में बहुत कुछ कहना होता है लेकिन ऐसा होने पर हम लड़ने लगते है और पूरा दिन तनाव में गुजरता है ।”
संगीता ने बात का समर्थन करते हुए कहा :
” हाँ आप सही कह रहे है , ऐसा होना भी नहीँ चाहिए लेकिन इसके लिए क्या करें ?”
संजय ने कहा :
मैं दो डायरियाँ ले कर आया हूँ और उस पर एक दूसरे का नाम लिख कर हम देंगे फिर हमारी जो भी शिकायत हो हम पूरा साल अपनी-अपनी डायरी में लिखेंगे और।अगले साल इसी दिन हम एक-दूसरे की डायरी पढ़ेंगे ताकि हमें पता चल सके कि हममें कौन सी कमियां हैं और साल भर हम लडेंगे नहीं ।”
संगीता भावशून्य थी फिर भी तैयार हो गयी ।
अगले साल फिर विवाह की वर्षगांठ पर दोनों उसी जगह साथ बैठे।
दोनों ने डायरिया बदली । एक सन्नाटा फैला हुआ था , मानों दोनों किसी परीक्षा हाल में बैठे हों ।
संगीता ने संजय की डायरी पढ़ी:
शिकायतों का सिलसिला इस तरह था :-
” – आफिस जाते समय तुमने स्माईल नहीं दी
– खाना खाते समय रोटी गरम नहीं थी ।
– मम्मी से बात नहीँ की
– हर समय मुन्ना में लगी रहती हो ।
– सिनेमा जाने के लिए फोन किया था पर तुम तैयार नहीं मिली और पूरा मूड खराब हो गया ।
वगैरह वगैरह
लेकिन जब संजय ने संगीता की डायरी खोली तो
पन्ने खाली थे , फिर कई पन्ने एक साथ संजय ने पलटे तो वो भी कोरे ।
संजय ने नाराज हो कर कहा :
” मुझे पता था कि तुम मेरी इतनी सी इच्छा भी पूरी नहीं करोगी ।
मैंने पूरा साल इतनी मेहनत से तुम्हारी सारी कमियां लिखीं ताकि तुम उन्हें सुधार सको और वही मौका तुम मुझे भी दो । ”
संगीता मुस्कुराई और कहा :
“मैंने सब कुछ अंतिम पृष्ठ पर लिखा है।”
संजय उतावला हो रहा था उसने अंतिम पृष्ठ खोला उसमें लिखा था :-
” तुमने जो भी शिकायतें लिखी हो, मुझें मंजूर है लेकिन उनके मूल कारण जाने बिना कोई दोषारोपण मत करना ।
मैं नारी हूँ और मैं शिकायत करने के लिए नहीं, परिवार को व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए हूँ ।
तुमने भी अपनी जिम्मेदारियों और व्यस्तता के बाबजूद जो असीम प्यार मुझे दिया है , उसके सामने इस डायरी में लिखने लायक कुछ नहीं है ।
मेरी अनगिनत अक्षम्य भूलों के बाद भी तुमने जीवन के प्रत्येक चरण में छाया बनकर मेरा साथ निभाया है। अब अपनी ही छाया में कोई दोष मैं कैसे देख सकती हूँ ?
– मुन्ना और मम्मी को मुझ पर विश्वास है कि मैं उनकी अपेक्षाओ से उन्हें कभी निराश नहीं करूँगी ।
वगैरह वगैरह
संजय की आँखो में आंसू आ गये । उसने कहा :
” सच में अपनी ही सोचता रहा और तुम सब का ”
अब इसके आगे मैं कुछ नहीं कह सकता ।
संजय ने संगीता का हाथ पकड़ते हुए बिना शिकवा शिकायत के अपने अटूट विश्वास को और मजबूत कर लिया ।