जिंदगी मुस्कुराती थी कभी, दरख़्तों की निगेहबानी में, और थाम लेता था वो हाथ मेरा, हर एक परेशानी में।
जिंदगी मुस्कुराती थी कभी, दरख़्तों की निगेहबानी में,
और थाम लेता था वो हाथ मेरा, हर एक परेशानी में।
ना जाने किस, टूटते तारे की दुआएं लगी थी मुझे,
कि मोहब्बत की नयी ऊंचाईयां लिख गया, वो मेरी अधूरी कहानी में।
वो घना अँधेरा, पलभर में हीं खौफ़जदा करता था मुझे,
अब तो सुकून सा मिलता है मुझे, निःशब्द रातों की बेजुबानी में।
सपने कभी सिरहाने बैठ कर थपकियाँ देते थे मुझे,
अब तो हर क्षण जगाती है हकीक़त, किस्मत की बेईमानी में।
हवाओं में घुली तेरी यादें, यूँ हमेशा हीं छूती हैं मुझे,
कि असर आज भी गहरा है तेरा, मेरे इश्क़-ए-रूहानी में।
शिकायतें कहनी भी हैं, और सुननी भी है, खुद की हीं मुझे,
पर जाने क्यों बातें ख़त्म हीं नहीं होती हमारी, बेहोश एहसासों की वीरानी में।
जाना है उस पार तो वैराग्य की नाव मिली है मुझे,
पर ये समंदर आज भी भटकाता है इसे, बेमौसम के तूफानों की रूमानी में।