जिंदगी भी कब तक यू
जिंदगी भी कब तक मेरी यू ,पिसते चली जायेगी ।
क्या यू ही दर्द तन्हाइयों से, झुझते चली जायेगी ।
अब क्या पता ,क्या खबर ,
ज़िन्दगी भर जिन्दगी को ,सिलते चली जायेगी ।
जिंदगी भी कब तक मेरी यू , पिसते चली जायेगी ।
गिरे हुए पत्तों की तरह ,मसलते हुए चले जाते हैं लोग ।
पतझड़ समझ कर बार बार, हटा हटा कर जाते हैं लोग ।
गले लगाने के बहाने से , गले दबा जाते हैं लोग ।
पता नही क्यू दगा दे जाते हैं लोग ,
पता नहीं क्यू हर बात पर दगा दे जाते हैं लोग ।
जिन्दगी भी कब तक मेरी यू ही चली जायेगी ।