*जिंदगी-भर फिर न यह, अनमोल पूँजी पाएँगे【 गीतिका】*
जिंदगी-भर फिर न यह, अनमोल पूँजी पाएँगे【 गीतिका】
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(1)
जिस दिवस आत्मीय-जन, हमसे विदा हो जाएँगे
जिंदगी-भर फिर न यह, अनमोल पूँजी पाएँगे
(2)
कौंध जाएँगी मधुर, यादें विगत की जब कभी
याद करके रोज, रोएँगे कभी मुस्काएँगे
(3)
पाणिग्रहण छूटा अगर तो, फिर कहाँ किसको मिला
साथ के बिछड़े हुए, क्षण नित्य ही तड़पाएँगे
(4)
घूमने जैसे चले आए कहीं पर पर्यटक
चार दिन सामान यों, अपना समस्त टिकाएँगे
(5)
पढ़ लिया है फैसला, सब ने अदालत का मगर
अपने नफे-नुकसान से, मतलब समस्त लगाऍंगे
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451