जिंदगी तुझसे ही
जिंदगी तुझसे ही है वास्तव मेरा
ओर तुझसे ही शिकायत करता हूँ
जीवन जीने के लिए ए जिंदगी
मै हर पल रोज मरा करता हूँ
कैसी अजीब कसमा कश है
परिवार को खुश देखने के लिए
परिवार से ही दूर रहा करता हूँ
जिंदगी तुझसे ही है वास्तव मेरा
ओर तुझसे ही शिकायत करता हूँ
है अजीब ये भी
के मै भैर तो उससे करता हूँ
ओर सजा खुद को पाता हूँ
वक्त ने भी समझाया था साथ चल
पिछे रहने पर कोई मुड़कर नही आता है
आज महसूस भी किया
वक्त के सिवा कोई अपना नही होता
अगर वक्त अच्छा हो गैर भी अपने
ओर वक्त गर बुरा तो सब दूर हो लेते है
अक्सर यही होता है
अक्ल ठोकर खाकर ही आती है