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19 Jan 2021 · 1 min read

जिंदगी जीने के सिर्फ़

जिंदगी जीने के सिर्फ इतने जज़्बात
वापिस सौलह वाले हो जाये लम्हात

बुढ़ापे में तो दांत भी नहीं चलते यारों
दुश्मन की जरूरत नहीं बुढ़ापा जो साथ

काश वो बचपन का होमवर्क मिल जाये
वो कागज़ की कश्ती के लिये हो बरसात

सौलह से जवानी में सत्रहवां शुरू हुआ
शायरी की हो गई, फ़िर अपनी शुरुआत

काश की वो उम्र का चालीसवां साल आये
जब बीबी बच्चे ना हो माशूक से आखँ लड़ात

वो फुरसत के बेफिक्री वाले दिन थे अपने
अब बढ़ती उम्र करती हमसे कुछ सवालात

वो दादी दादी की कहानियां और योगा हो
फ़िर से जवानी वापिस आये ये है ख्यालात

वो जवानी की लपटें दिल मे उमड़ते शोले से
60 साल की उम्र में कहाँ रही जवानी की बात

ऐ जमीं अब तू लपेट दे मुझपर अपनी चादर
या आसमाँ वाले दे मुझे वही मेरे फ़िर हालात

फ़िर से बड़ो का आश्रीवाद मिल जाये मुझकों
तो हो जाये मेरी जवानी वाले दिनों से मुलाक़ात

अशोक सपड़ा हमदर्द की क़लम से दिल्ली से

1 Like · 281 Views
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