जिंदगी के हादसे
हादसों से भरे इस जहान में ,
जिंदगी हालातों से गुज़रती है।
हर सु बेचैनी तड़प ,कई फिक्रें ,
कब दो घडी सुकून से बैठती है।
क्या ,कब ,कैसे ,क्यों,किसलिए ?
ज़हन में सवालों की झड़ी रहती है।
ना जाने कब ,कहां,क्या हो जाए,
हर पल डरी सहमी सी रहती है।
पैरों तले ज़मीं नहीं,आसमा है दूर ,
कोई सहारा पाने को छटपटाती है ।
काश ! खुदा का ही सहारा मिल जाए,
“अनु,” अब उसी से गुजारिश करती है।