जिंदगी के लिए
ये सिलसिले अटूट शिकायतों के कबतक चलेंगे,
कुछ इससे इतर बातें भी होती हैं ,जिंदगी के लिए।
अनजान और बेजान बातों में उलझना ठीक नही,
संज़ीदगी बातों में भी जरूरी है ,दिल्लगी के लिए।
मन से तेरा होना पर जुबान से बयां न कर पाना,
बड़ा कठिन सा लगता है ,ये पल बन्दगी के लिए।
ये दिन बहुत कठिनाइयों से तर- बतर होते हैं,
शाम की हवा भी तो ,जरूरी है ताज़गी के लिए।
दुनिया के ढकोसलों से कोसो दूर रहना पड़ता है,
न जाने क्या – क्या करना होता है ,सादगी के लिए।
– सिद्धार्थ पाण्डेय