जिंदगी के दर्द
कभी आँखों से टपकी लकीरों को,
अपने हाथों से मिटाया करती थी।
वही जिंदगी आज मुझे,
हर पल रुलाये बैठी है।
दुखों की संदूक पर,
हंसी का ताला लगा दिया है।
दफ़न कर दिया एहसासों के समंदर में कहीं,
झूठ होठों पर रख कर फैला दिया है मैंने,
ताकि लोग मेरे सच को कभी समझे ही नहीं।
मुस्कुराता हूँ कि लब पर तन्हाई की पपड़ी न पड़े,
झूठ की मुस्कान भी अनमोल बिकती है,
लोग दुखों की दुकान से कुछ खरीदते ही नहीं।
ज़मीर शरीर गुरुर सब बिकता है
ईमान धरम वफ़ा,
मक्कारी की दुकानों में दिखते ही नहीं।