जिंदगी के अल्फा़ज
अल्फा़ज भी जिंदगी की तरह हो गये
तुटतें ही जा रहे है
दरिया की तरह बहतें थे ख्यालों में
बहतें बहतें दुर जा रहे है
कोरें कागज पर खुशीयाँ ही लिखुं मैं तो
ये ख्वाब भी नहीं आ रहे है
अर्ज कितना करु हाल ऐ जिंदगी
कर्ज जीने का अब तक चुका रहे है।