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23 Jul 2024 · 1 min read

जिंदगी के अल्फा़ज

अल्फा़ज भी जिंदगी की तरह हो गये
तुटतें ही जा रहे है
दरिया की तरह बहतें थे ख्यालों में
बहतें बहतें दुर जा रहे है
कोरें कागज पर खुशीयाँ ही लिखुं मैं तो
ये ख्वाब भी नहीं आ रहे है
अर्ज कितना करु हाल ऐ जिंदगी
कर्ज जीने का अब तक चुका रहे है।

Language: Hindi
69 Views
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