जिंदगी की सच्चाई
जिंदगी क्या है
खुद ही समझ जाओगे
प्रकृति एक पाठ शाला है
सानिध्य में
जीवन निखरता है
बूंद एक ओस की
जीवन दर्शन सीखाने
के लिए है पर्याप्त
प्रेम, सौंदर्य,।
अवसाद,मिलन
बिछोह,रुसवाई
और बेवफाई के
एहसासो से भारी।
उँगलियाँ यूँ न सब
पर उठाया करो
आदमी बुलबुला है
पानी का और पानी
की बहती सतह पर
टूटता भी है और
डूबता भी है
फिर उभरता है
फिर से बहता है।
न समन्दर निगल
सका हमको न
तवारीख तोड़ पाई
वक़्त की मौज पर
सदा बहता, आदमी
बुलबुला है पानी का
ये जिंन्दगी ओर्
इनके साथ परस्पर
सामांजस्य बिठाते
आगे की ओर बढ़ना
जिंदगी की सच्चाई